प्रधानाचार्य की कलम से…
भारतवर्ष , बंग्लादेश तथा नेपाल की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं और उत्तर-पूर्वी 'गुल्म-राज्यों' को राष्ट्र की समग्रता से जोड़ने के कारण प्रशासकीय तथा सामरिक दृष्टि से अतिशय महत्वपूर्ण होते हुए भी, कटिहार जिला उपेक्षित रहा है। सचमुच… कोसी, महानन्दा और गंगा के मुहाने पर अवस्थित कटिहार का यह ‘मैला आँचल’ भूदानी पुरोधा स्व0 वैद्यनाथ चौधारी, उपन्यासकार स्व0 अनूपलाल मण्डल,अमर कथा-शिल्पी स्व0 फ़णीश्वर नाथ ‘रेणु’ और अमर शहीद छात्र ध्रुव कुण्डू सरीखे सपूतों को जन्म देने के बावजूद आज एक प्रश्नाकुल छवि ही प्रस्तुत करता है। बिहार प्रान्त के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के साथ कटिहार भी प्रलयकारी बाढ़ों की अनवरत विभीषिकाओं का दंश झेलते हुए आज भी अपनी विद्रूप अवस्था को सुधारे-संवारे जाने की आस में प्रतिक्षारत है।
इसी ‘मैला आँचल’ में कुछ मनीषयों की महाकल्पना से उदभूत ज्ञान तथा विद्या की पुण्यस्वरुपा गंगोत्री ‘डी0 एस0 कालेज, कटिहार’ के रुप में अवतरित हुई। तब इसके पीछे नव-स्वतंत्रता-प्राप्त भारत की सशक्त नई पीढ़ी के निर्माण का उद्देश्य स्पष्ट था। इस महाविद्यालय का सौभाग्य रहा कि इसे स्व0 दर्शन साह, स्व0 रामबाबू सिंह तथा स्व0 कालीचरण यादव जैसे अनेक उदारमना लोगों की संचित सदाशयता उपलब्ध हो पायी। साथ ही प्राप्त हुआ महर्षि संत मेंही दास का शुभाशीर्वाद तथा इक्यावन रूपये नकद।